हरिहरपुरी के सोरठे
हरिहरपुरी के सोरठे
सबसे बुरा कुसंग, सत्संगति धारण करो।
सदा रहे मन चंग, हो यह पावन अति सहज।।
सदा बदलता रंग,नहीं पावन हो सकता।
जो करता सत्संग,वह बड़ भागी मनुज है।।
जिसमें श्रद्धा भाव,वही ज्ञान पाता सहज।
गन्दा जहाँ स्वभाव, वह भोगी दानव दनुज।।
परहित जिसके कर्म, वही पुरुष सुंदर मना।
कर्म उसी का धर्म, जो संवेदनशील है।।
जो करता है त्याग,वही राम के तुल्य है।
सच्चाई से भाग, जाता दानव पतित है।।
पावन शुद्ध विचार, बुलाता स्वर्ग धरा पर।
बहती है रसधार, जहाँ मंगली कामना।।
बन जा सुंदर भाव, रचो इक पावन जगती।
उत्तम भाव अभाव,कभी नहीं कल्याणमय।।
Muskan khan
09-Jan-2023 05:57 PM
Well done
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Sushi saxena
08-Jan-2023 08:30 PM
👌👌
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